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*आला हज़रत*
कुछ गैरों ने पूंछा आलाहज़रत को इतना क्यों मानते हो -?
तो कहा : कान खोल के सुनो ________
इस दुनियां में बहुत कलमगार आये ,
किसी ने कलम उठाया लैला का ज़िक्र किया ,
किसी ने कलम उठाया मजनूं का ज़िक्र किया ,
किसी ने क़लम उठाया शीरी का ज़िक्र किया ,
किसी ने क़लम उठाया फरहाद का ज़िक्र किया ,
लेकिन आलाहज़रत ने जब , जब क़लम उठाया किसी दुनियादार की नहीं बल्कि मदीने के ताज़दार के बारे में ज़िक्र किया .
आप देखो तो सही क्या खूब फ़रमाते हैं आलाहज़रत :
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उन्हें जाना , उन्हें माना , न रखा गैर से काम , लिल्लाह हिल हम्द मैं दुनियां से मुसलमान गया .
क़लम उठा आलाहज़रत का तो नबी की पेशानी के बारे में लिखा :
जिस के माथे शफ़ाअत का सेहरा रहा, उस ज़बीने सआदत पे लाखों सलाम .
क़लम उठा आलाहज़रत का तो नबी के गोशे मुबारक के बारे में लिखा :
दूरो नज़दीक के सुनने वाले वो कान , काने लाले करामत पे लाखों सलाम.
क़लम उठा आलाहज़रत का लवे मुस्तफ़ा के बारे में लिखा :
पतली, पतली गुले क़ुदस की पत्तियां , उन लवों की नज़ाक़त पे लाखों सलाम .
जब क़लम उठा आलाहज़रत का आमदे हुज़ूर के बारे में लिखा :
जिस सुहानी घड़ी चमका तैबा का चाँद , उस दिल अफरोज साअत पे लाखों सलाम.
क़लम उठा आलाहज़रत का शहरे रसूल के बारे में लिखा :
हरम की ज़मीं और क़दम रख के चलना , अरे सर का मौक़ा है ओ जाने बाले .
क़लम उठा आलाहज़रत का नबी की हयात के बारे में लिखा :
तू ज़िंदा है वल्लाह , तू ज़िंदा है वल्लाह मेरे चश्मे आलम से छुप जाने बाले.
क़लम उठा आलाहज़रत का तो अताये रसूल के बारे में लिखा :
मेरे करीम से गर , क़तरा किसी ने माँगा, दरिया वहा दिए हैं दुरबे बहा दिए हैं..
क़लम उठा आलाहज़रत का तो शफ़ाअत ए रसूल के बारे में लिखा :
सबने शफे महशर में ललकार दिया हमको , अये बेकसों के आक़ा अब तेरी दुहाई है .
और जब क़लम उठा आलाहज़रत का तो गुम्बदे खज़रा के बारे में लिखा :
हाजियो आओ शहंशाह का रौज़ा देखो, क़ाबा तो देख चुके , काबे का क़ाबा देखो ....
👉🏽इसलिए हम अपने इमाम की बारगाह में खिराजे अक़ीदत पेश करते हैं --
🌹*डाल दी क़ल्ब में अज़मते मुस्तफ़ा*🌹
🌿*सैय्यदी आलाहज़रत पे लाखों सलाम*🌿
🌹*जीनकी हर हर अदा सुन्नते मुस्तफा*🌹
🌿*वो रजा आला हजरत बरेली के शाह*🌿
🌹*मुझसे खिदमत के कुदसी कहे हारजा*🌹
🌿*मुस्तफा जाने रहमत पे लाखो सलाम*🌿
========================================================================*_अल्लाह हमे अपने महबूब हुज़ूर सल्लल्लाहों अलैहि वसल्लम के सदके इसी तरह इल्मे दीन सीखने समझने औरअमल करने की तौफ़िक अता करे।_* /आमीन/